अचानक कंधे जाम हो जाएं तो क्या करें?
डॉक्टर राजू वैश्य
बढ़ती उम्र के साथ कंधे को हिलाने-डुलाने में समस्या आने लगती है। यदि कंधों को हिलाने में दर्द महसूस होने लगे तो यह कंधे जाम होने का परियाचक है जिसे डॉक्टरी भाषा में फ्रोजन शोल्डर या एडहेसिव कैप्सुलाइटिस कहते हैं। ये बहुत ही कष्ट देने वाली स्थिति है जो किसी चोट के कारण या बिना चोट लगे भी हो सकती है।
पुरुषों की तुलना में यह समस्या महिलाओं में अधिक होती है। आम तौर पर यह 40 से 65 वर्ष की उम्र में होती है। मधुमेह के मरीजों में से 10 से 20 फीसदी मरीजों को यह समस्या हो सकती है।
फ्रोजन शोल्डर को समझने के लिए कंधे की संरचना को समझना आवश्यक है। हमारे कंधे तीन हड्डियों में बने होते हैं। ये हैं, स्कापुला (शोल्डर ब्लेड), ह्यूमेरस (ऊपरी हाथ की हड्डी) और क्लैविकल (कॉलर बोन)। कंधे के जोड़ के चारों तरफ ऊतक होते हैं। कंधे की मांसपेशियां लिगामेंट से बनी होती हैं। लिगामेंट मुलायम ऊतक होते हैं। लिगामेंट सभी हड्डियों को जोड़ते हैं। कंधे के भीतर ज्वाइंट फ्लूड भ्ज्ञी होता जो जोड़ों की सतह को चिकनापन एवं तरलता प्रदान करता है।
फ्रोजन शोल्डर के कारण
फ्रोजन शोल्डर की स्थिति क्यों आती है? इसके बारे में दरअसल रहस्य बना हुआ है। एक विचार ये है कि यह ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया के कारण होता है। ऑटो इम्यून प्रतिक्रिया के दौरान शरीर को संक्रमणों से बचाने वाली रक्षा प्रणाली गलती से शरीर के हिस्सों पर ही हमले शुरू कर देती है। हमारा शरीर यह गलत सोच लेता है कि जिन ऊतकों पर वह हमले कर रहा है वह बाहरी वस्तु हैं। इसके कारण जिस ऊतक पर हमला होता है वहां तीव्र सूजन होती है। फ्रोजन शोल्डर की स्थिति में कंधे में तीव्र सूजन होती है। इससे कंधे को हिलाना डुलाना मुश्किल हो जाता है। यह सब इतना अचानक क्यों होता है यह भी अभी रहस्य बना हुआ है।
फ्रोजन शोल्डर की स्थिति चोट लगने के बाद भी उत्पन्न हो सकती है। चोट के कारण कंधे को हिलाना डुलाना मुश्किल हो जाता है। इसका एक उदाहरण यह है कि कलाई में फ्रैक्चर होने पर जब पूरी बांह पर प्लास्टर चढ़ा दिया जाता है तब कुछ कारणों से कुछ लोगों में प्लास्टर उतरने के बाद कुछ समय तक कंधे को हिलाना डुलाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे भी मामले सामने आए हैं जब कंधे को छोड़कर अन्य भागों की सर्जरी के बाद और यहां तक कि दिल के दौरे के बाद मरीज के स्वास्थ्य लाभ करने पर फ्रोजन शोल्डर की समस्या उत्पन्न होती है। यह स्थिति कंधे की अन्य समस्याओं के कारण भी उत्पन्न हो सकती है। कई बार बर्साइटिस, इंपिगेमेंट सिंड्रोम और रोटेटर कप के आंशिक रूप से फटने के कारण फ्रोजन शोल्डर की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
फ्रोजन शोल्डर की आरंभिक स्थिति में दर्द के कारण मरीज कंधे को कम हिलाता डुलाता है। कंधे को कम हिलाने डुलाने के कारण धीरे-धीरे स्थिति गंभीर होती जाती है। इसके उपचार के पहले चरण में कंधे की सक्रियता वापस लाई जाती है और इसके बाद फ्रोजन शोल्डर के कारणों को दूर किया जाता है।
फ्रोजन शोल्डर के उपचार में समय लग सकता है। ज्यादातर मरीजों को उपचार से लाभ होता है लेकिन इसमें महीनों लग सकते हैं। उपचार का पहला चरण कंधे की सूजन को कम करने और कंधे की सक्रियता बढ़ाने पर केंद्रित होता है। दवाइयों के अलावा मरीज को फीजियोथेरेपी दी जाती है। कई बार कुछ इंजेक्शन दिए जा सकते हैं।
दवाइयों, फीजियोथेरेपी और इंजेक्शन से अधिक फायदा नहीं होने पर लोकल एनीस्थिसिया देकर कंधे की सर्जरी की जाती है। ज्यादातर मामलों में सर्जरी के बाद मरीज के कंधे की सक्रियता बहुत तेजी से बढ़ती है। आज के समय में आर्थोस्कोपी की मदद से अधिक चीर-फाड़ के बिना भी कंधे की सर्जरी की जा सकती है।
(प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित किताब फैमिली हेल्थ गाइड से साभार)
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